बीएचयू के वैद्य आनंद चौधरी ने पीएम को चिट्ठी भेजकर बताया है कि ————–
- भारतीय आचार्यों ने रसायनशास्त्र एवं आयुर्वेद में गहन शोध के उपरांत ईसा की 5वीं शताब्दी में पारे (Mercury) को औषधीय रूप में परिवर्तित कर रसौषधि का आविष्कार किया, जिसे 11वीं शताब्दी से आयुर्वेद में प्रभावी रूप से सम्मिलित कर लिया गया।
- पश्चिमी जगत ने भी पारे के औषधीय प्रयोग हेतु प्रयास किए, परंतु वे 1500 वर्षों तक असफल रहे और अंततः उन प्रयोगों को त्याग दिया।
- भारत सरकार द्वारा हस्ताक्षरित मिनामाटा संधि के तहत पारे के प्रयोग को सीमित करने का दायित्व है, परंतु इसके औषधीय प्रयोग को लेकर विशेष विचार आवश्यक है।
- देश में वर्तमान में 700 टन पारा का उपयोग विभिन्न उद्योगों में हो रहा है, जिसमें से केवल 40 टन पारा ही आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण हेतु आवश्यक है। इसका विवेकपूर्ण उपयोग
पारंपरिक शोधन, मरण और संस्कार विधियों द्वारा विषरहित औषधि स्वरूप में किया जाता है।
- आज आयुर्वेद के समस्त विशेषज्ञ एवं वैद्य पारंपरिक औषधियों में इन रसौषधियों का प्रभावी और सुरक्षित प्रयोग कर रहे हैं, जो अनेक जटिल रोगों में जीवनरक्षक सिद्ध हो रहे हैं।
- वर्तमान में पारे की कीमत तीन गुना बढ़ चुकी है और यह केवल द्वितीयक बाजारों से ही उपलब्ध हो रहा है, जिससे औषधियों की लागत में अत्यधिक वृद्धि हो गई है और सामान्य जनमानस इन्हें वहन नहीं कर पा रहा है।
- पर्यावरण मंत्रालय द्वारा UNDP के साथ मिलकर “पारा मुक्त भारत” जैसे अभियान चलाए जा रहे हैं, जिसका हम समर्थन करते हैं, बशर्ते कि औषधीय प्रयोगों को इससे पृथक रखा जाए।
- पारंपरिक शोधन विधियां भारतीय आचार्यों की बौद्धिक संपदा (IPR) हैं, जो कि आज भी सुरक्षित रूप से चिकित्सकीय प्रयोग में लाई जा रही हैं।
- आयुष मंत्रालय द्वारा पारे से बनी हर्बो-मिनरल औषधियों की सुरक्षा एवं प्रभावशीलता के वैज्ञानिक प्रमाण प्रस्तुत कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंध से छूट का प्रयास किया जा रहा है।
- किंतु ऐसा प्रतीत होता है कि पर्यावरण मंत्रालय इस संबंध में आयुष मंत्रालय के प्रस्तावों के प्रति पर्याप्त तत्पर नहीं है, जबकि यह आयुर्वेद चिकित्सा की रीढ़ है।
अतः, हम आयुर्वेद से जुड़े समस्त विशेषज्ञ आपके श्रीचरणों में निवेदन करते हैं कि आप इस विषय में आवश्यक हस्तक्षेप करें और पारे की उपलब्धता को नियंत्रित, प्रमाणिक और उचित मूल्य पर सुनिश्चित करने हेतु आदेश प्रदान करें, जिससे कि आयुर्वेदिक औषधियों का निर्माण सुचारु रूप से जारी रह सके।
आपके इस निर्णय से न केवल भारत की पारंपरिक ज्ञान प्रणाली की रक्षा होगी, बल्कि मानवता के हित में वह कार्य संपन्न होगा जिसमें शेष विश्व विफल रहा, किंतु भारत सफल हुआ।
हमें पूर्ण विश्वास है कि —
“मोदी हैं तो मुमकिन है।”
आपका आज्ञाकारी,
(आनंद के. चौधरी)