गाजीपुर के एक भुंइहार थे, नाम था रामनाथ। प्रतिभाशाली थे। कम्युनिस्ट लीग ऑफ इंडिया बोले तो सीएलआई की स्थापना इन्होंने ही की थी। इन्होंने शशिप्रकाश सिन्हा नामक एक चेला मूड़ा था। अब जैसा कि इतिहास गवाह हैः लाला लोग सदैव ही धन-संपत्ति से चिपके रहे हैं और मलाई चाँपते रहे हैं तो लाला शशिप्रकाश सिन्हा ने भी ज्ञान-पिपासु टुटपुंजिया वर्ग को खूब चूतिया बनाया और करोड़ों की संपत्ति अर्जित की। कमला पांडेय के नाम से चार किताबें लिखीं और उसका घर हड़प लिया, कहने को तो ट्रस्ट वगैरह बनवाया पर असल बात लोग जानते हैं, ट्रस्टी मुझे भी बनाया गया था।

———————————————-

इसी तरह से बनारस में भी एक लाला रहता है, नाम है संजय श्रीवास्तव। प्रलेस का महासचिव है। एक प्राइवेट कॉलेज में चवन्नी की नौकरी करता है और दूसरों के पैसों से बड़े-बड़े साहित्यिक आयोजन करवाता है और खूब चंदा उगाही करता है। इसी चंदे के पैसों से इसका घर चलता है। इलाहाबाद में हमारे ब्राह्मण भाई रहते हैं रुद्रादित्य प्रकाशन के ओझा जी। उन्हें चने के झाड़ पर चढ़ाकर इसने इतना बड़ा आयोजन करवा दिया कि बेचारे धनहीन हो गए हैं और रोजमर्रा के अपने खर्चों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं।

—————————————–

ब्राह्मणों सावधान हो जाओ, भुंइहार-लाला की विषवेल तुम्हें जीने नहीं देगी। प्रलेस के नाम पर ठगी करने वाले, पत्रिका के नाम पर धन-उगाही करने वाले लाला संजय श्रीवास्तव को ओझा जी किसी दिन गुस्से में आकर पेल-पाल न दें, मुझे तो अब यही डर सताने लगा है क्योंकि यह कुत्ता सुधरने वाला नहीं। इसको मुफ्त का माल उड़ाने का खूब चस्का लगा हुआ है। तेरी जितनी सैलरी है, उसी में जीने की आदत डाल हरामखोर।

—————————————————-

चंदे पर पलने वाले लाल लंगूरों की गाँड़ में अगर योगी बाबा की पुलिस लौह-दंड पेल दे तो मुफ्तखोरों में थोड़ा भय का संचार होगा।

——————–

बस प्रसंगवश बताते चलें कि कात्यायनी नामक एक घोर चंदाखोर ने फेसबुकिया बहस में एक नया शब्द ईजाद किया है मुखशौच। खोजबीन करने पर पता चला है कि यह गाँड़ से खाती है और मुँह से हगती है और इसी के लिए इसने नया शब्द ईजाद किया है। आजकल फिलिस्तीन को लेकर चिंता प्रकट कर रही है पर असल वजह यह है कि अगर रात के खाने में इसको बकरा-मुर्गा और बीयर न मिले तो इसका पेट ही नहीं भरता। इसके एक ही औलाद है और वह भी लँगड़ी। ग्रोक साहब की मेहरबानी से वह भी बेरोजगार हो गई है। अनुवादकों को अब कौन पूछता है? तो इसने भिखमँगई करने के लिए फिलिस्तीन के मुद्दे को उठाने का काम शुरू किया है।

———————————————

रही कामता प्रसाद की बात तो वह तो पहले भी मजूरी करते थे और अब भी वेबसाइट बनाने का चोखा धंधा कर रहे हैं, माने मेहनत से पैसा कमा रहे हैं।

—————————————-

सत्यम वर्मा नामक चुगद की नियति यही है कि लँगड़े की लात खाए क्योंकि अपनी पूरी जिंदगी उसने कभी किसी कुत्ते-बिल्ली की भी जिम्मेदारी नहीं उठाई और अपनी ही उदरपूर्ति की चिंता में लिप्त रहा और उसके डेढ़-श्याणे साढ़ू ने संपत्ति-कब्जे की अपनी वृहत परियोजना के मद्देनजर सभी को निरबसिया ही बनवाए रखा।

———————————

देवा रे देवा —————– ऐसे सड़ेले लालाओं की हरमजदगी से भारत देश की रक्षा कैसे होगी रे।


Leave a Reply