वाराणसीः शहर की मशहूर साइकियाट्रिस्ट डॉ. अमनदीप गिल ओहरी भांग के नशे समेत भाँति-भाँति के नशों को छुड़ाने के लिए जरूरी काउंसिलिंग और दवाएं प्रेसक्राइब करती हैं।
उनका कहना है कि नशे की लत लग जाने पर व्यक्ति को तरह-तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। मादक-द्रव्य नहीं मिलने पर नींद नहीं आती, घबराहट-बेचैनी होती हैै, चक्कर आते हैं, हाथ-पैर काँपते हैं। मिजाज चिड़चिड़ा हो जाता है, गुस्सा बहुत आता है। किसी भी काम में मन नहीं लगता। व्यवहार बदल सा जाता है। दिन में नशे की जरूरत लगातार महसूस होती रहती है। मादक द्रव्य को पाने के लिए व्यक्ति सभी हदों को पार कर जाता है। चाहकर भी नशा छोड़ नहीं पाता।
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डॉ. गिल दवाओं के चयन को लेकर काफी सख्ती से पेश आती हैं। मसलन, बाइपोलर डिसआर्डर के मामले में उन्हें बखूबी मालूम है कि एकमात्र डिवालप्रोएक्स सोडियम ही कारगर दवा है। लीथियम से दाँत सड़ते हैं और यह उतनी प्रभावी है भी नहीं, दूसरी मिर्गी-रोधी दवाएं भी लगभग निष्प्रभावी होती हैं। लेकिन, कई बार मरीज लॉस ऑफ लिबिडो-ईडी की शिकायत करते हैं और डॉक्टर डिवालप्रोएक्स की जगह कोई और दवा लिखने की गलती कर बैठते हैं। डॉक्टर को अपनी पढ़ाई और कनविक्शन को लेकर बजिद होना चाहिए और मानसिक स्वास्थ्य पर फोकस्ड ढंग से काम करना चाहिए। अगर बीमारी है तो इलाज होगा और दवाओं के नुकसान भी झेलने ही होंगे।
SSRI ग्रुप के एंटी-डिप्रेसैंट्स भी बेहद जरूरी हैं और मरीज को उनके साइड-इफेक्ट्स को लेकर स्वीकार कर लेने वाला भाव अपने अंदर डेवलप कर लेना चाहिए क्योंकि मूड स्टेबल रहे, यह बात सर्वोपरि महत्व की होती है। हाँ, न्यूट्रास्यूटिकल्स को लेकर पॉजिटिव रुख अपनाने की जरूरत है। केमिकल इमबैलेंस को ठीक करने में कई बार इनका रोल अहम होता है। ड्रग-हॉलिडे से भी कुछेक चिंताओं को एड्रेस किया जा सकता है। मानसिक रोगी दूसरे स्वस्थ-सामान्य व्यक्तियों जैसा शत-प्रतिशत हो ही नहीं सकता, इस बात को भी मान लेने में ही भलाई है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की सीमाओं को भी हमें समझना ही होाग।