वाराणसीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के संग्रहालय विज्ञान विभाग ने “संग्रहालय एवं संग्रहालय विज्ञान के विस्तारित आयाम: यथार्थ, संभावनाएँ और चुनौतियाँ” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। यह कार्यक्रम बीएचयू के वैदिक विज्ञान केंद्र में आयोजित हुआ, जिसमें 100 से अधिक संग्रहालयविदों, शोधकर्ताओं और छात्रों ने संग्रहालय एवं संग्रहालय विज्ञान में हो रहे नवीनतम विकास पर विचार-विमर्श किया।
संगोष्ठी का उद्घाटन सत्र विभागाध्यक्ष प्रो. उषा रानी तिवारी के स्वागत भाषण से आरंभ हुआ। प्रो. तिवारी ने संगोष्ठी के उद्देश्य प्रासंगिकता एवं विभिन्न आयामों को रेखांकित किया। विशिष्ट अतिथि प्रो. कल्याण कृष्ण ने संग्रहालयों की सांस्कृतिक संरक्षण में भूमिका पर प्रकाश डाला। मुख्य अतिथि प्रो. (डॉ.) मानवी सेठ ने सामुदायिक संग्रहालयों और विरासत संरक्षण के विभिन्न पहलुओं को विश्लेषित किया। प्रो. आशीष बाजपेई ने संग्रहालय विपणन (मार्केटिंग) के साथ-साथ संग्रहालय में दर्शकों की सहभागिता से संबंधित विभिन्न नीतियों को रेखांकित किया और संग्रहालय में दर्शकों की सहभागिता से जुड़ी कई नीतियों का उल्लेख किया।
डॉ. अभिजीत दीक्षित (IGNCA) ने अपने अध्यक्षीय संबोधन के माध्यम से चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा की हम संरक्षण के माध्यम पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं जबकि वास्तव में क्या संरक्षित किया जाना चाहिए ? इस पक्ष चिंतन करने की आवश्यकता है। इस सत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), आभासी वास्तविकता (VR), संरक्षण और सांस्कृतिक विरासतों में संरक्षण हेतु प्रयोग की जाने वाली आधुनिक तकनीकों के क्रियान्वयन और उनकी सीमाओं पर चर्चा की गई। प्रमुख वक्ताओं में डॉ. अचल पांड्या (IGNCA), डॉ. शेफालिका अवस्थी (जूनागढ़ संग्रहालय), और डॉ. आर. गणेशन (भारत कला भवन) शामिल थे।
दूसरे सत्र की अध्यक्षता प्रो. अवधेश प्रधान (सेवानिवृत्त, हिंदी विभाग, बीएचयू) जी के द्वारा की गई, उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय परिसर स्थित विभिन्न हेरिटेज भवन के संरक्षण की दिशा में पहल करने पर ध्यान आकर्षित किया। श्री अजय श्रीवास्तव (क्यूरेटर इंचार्ज, क्राफ्ट्स म्यूज़ियम, वाराणसी) ने क्राफ्ट्स म्यूज़ियम, वाराणसी में जीआई गैलरी बनाने की प्रक्रिया पर चर्चा की, जबकि डॉ. विधि नागर (विभागाध्यक्ष, नृत्य विभाग, बीएचयू) ने कथक प्रस्तुति के माध्यम से भारतीय प्रतिमा विज्ञान (आइकॉनोग्राफी) से संबंधित विभिन्न मुद्राओं को दर्शाया। वरिष्ठ पत्रकार श्री अमिताभ भट्टाचार्य ने वाराणसी की लुप्त होती अमूर्त विरासतों और उसके त्वरित संरक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया।
प्रो. विभा त्रिपाठी और प्रो. एम.एन.पी. तिवारी, (एमिरटस प्रोफेसर द्वय), ने अपने उद्बोधन में पुरातत्व, कला इतिहास और म्यूज़ियोलॉजी के आपसी संबंधों पर प्रकाश डाला और भावी पीढ़ियों के लिए स्वास्तिक जैसे अन्य प्रतीकों पर आधारित संग्रहालय स्थापित करने का सुझाव भी दिया। डॉ. डी.पी. शर्मा (पूर्व निदेशक, भारत कला भवन, बीएचयू) द्वारा दिए गए अध्यक्षीय संबोधन में संग्रहालयों की बदलती भूमिका और उनकी सामाजिक समावेशिता एवं विकास में संग्रहालयों के योगदान पर गहन चिंतन प्रस्तुत किया गया।
इस अवसर पर बीएचयू के विभिन्न संकायों के प्रतिष्ठित प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष उपस्थित थे, जिनमें प्रो. अतुल त्रिपाठी, प्रो. डी.एन. तिवारी, प्रो. ओ.एन. सिंह, प्रो. अशोक सिंह, प्रो. एम.पी. अहिरवार, प्रो. अर्पिता चटर्जी, प्रो. अर्चना शर्मा, प्रो. डी.के. ओझा, प्रो. दिवाकर प्रधान, प्रो. सुमिता चटर्जी, प्रो. जे.एस. झा, प्रो. सरस्वती कुमारी, डॉ. श्रेया पाठक आदि शामिल थे। साथ ही प्रो. श्रीरुप रायचौधरी (निदेशक, भारत कला भवन, बीएचयू) और वरिष्ठ क्यूरेटर भी इस अवसर पर उपस्थित रहे।
इस संगोष्ठी में हुए विचार-विमर्श से यह स्पष्ट हुआ कि संग्रहालयों के संरक्षण और आधुनिकीकरण के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है, जिससे संग्रहालयों का भविष्य अधिक समावेशी और प्रभावी बन सके।