वाराणसीः साहित्य मनीषी आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी ने कहा कि रचनाकार में भी एक आलोचक होता है। भारतीय परंपरा में महान दार्शनिक महान कवि भी हो सकता है। राजशेखर की बात को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि रचना और आलोचना में दांपत्य का संबंध होता है; दोनों एक-दूसरे का अनुशासन स्वीकार करते हैं। आनंदवर्धन ने साहित्य विद्या लक्ष्य ग्रंथों से की है। साहित्य विद्या का आशय साहित्य के शास्त्र से और लक्ष्य ग्रंथों का आशय गौरव ग्रंथ और क्लासिक ग्रंथों से लिया जाता है।

भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में माना है कि शास्त्र को लोक के पास जाना चाहिए; शास्त्र के बिना लोक नहीं और लोक के बिना शास्त्र नहीं, यही संबंध रचना और आलोचना में भी होता है। कालिदास आलोचना के सामने चुनौती प्रस्तुत करते हैं। यह बातें उन्होंने गुरुवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय सामाजिक विज्ञान संकाय के संबोधि सभागार में आयोजित कमला प्रसाद स्मृति व्याख्यान 2025 में ‘रचना और आलोचना के अंत:संबंध : भारतीय परंपरा का पक्ष’ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहीं। इस कार्यक्रम में प्रो. अवधेश प्रधान, प्रो. बिंदा परांजपे, प्रो. सदाशिव कुमार द्विवेदी, प्रो. कृष्णमोहन पांडेय, प्रो. विनय कुमार सिंह, प्रो. डी. के. ओझा,प्रो. अर्चना शर्मा,प्रो. अर्पिता चटर्जी, प्रो.प्रभाकर सिंह, प्रो. सत्यपाल शर्मा, प्रो. नीरज खरे, प्रो. समीर कुमार पाठक, डॉ. प्रभात कुमार मिश्र, डॉ. महेंद्र प्रसाद कुशवाहा, डॉ. सत्यप्रकाश सिंह, डॉ. रविशंकर सोनकर, डॉ. प्रियंका सोनकर, डॉ. मीनाक्षी झा, डॉ. विंध्याचल यादव, डॉ. शैलेन्द्र सिंह, डॉ. झबलू राम, डॉ. सचिन मिश्र, डॉ. विहाग वैभव के साथ शोधार्थी एवं विद्यार्थी काफी संख्या में उपस्थित रहे।