मुकेश त्यागी
मोनोपॉली पूंजी के उदय, परजीवी वित्तीय पूंजी के प्रभुत्व और साम्राज्यवादियों द्वारा दुनिया के प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष उपनिवेशों में परस्पर बंटवारे के पहले वीजा पासपोर्ट का कोई सिस्टम नहीं था। कोई धर्म नस्ल के इंसान का दुनिया में कहीं भी जाना रहना मुमकिन था।
इसके पूर्व 19वीं सदी में यहूदी कारोबारी यूरोप में ही नहीं, बगदाद व मुंबई तक में उरूज पर थे, उन्हें अपने लिए एक अलग देश की जरूरत नहीं थी; बंगालियों को आगरा-इलाहाबाद में ही नहीं, लाहौर कराची में भी घुसपैठिया नहीं कहा जाता था; सुदूर ब्राजील में अरब मुसलमानों की बस्तियां बस जाती थीं तो जापानी फूजीमोरी दक्षिण अमरीका के पेरू में राजनीति पर दखल कर सकते थे; गुजराती पटेल व बोहरा अफ्रीका तक में बसकर व्यापार में दखल रखते थे; मारवाड़ी व तमिल शेट्टी बर्मा, थाइलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया तक कारोबार जमाए थे और ईरान से पहले गुजरात फिर मुंबई में बसे पारसी लंदन-पेरिस में दफ्तर खोलते थे; यहां तक कि दादाभाई नौरोजी लंदन में सांसद बने तथा मजदूर सभाओं में उन मार्क्स की बेटी के साथ भाषण दे सकते थे जो खुद जर्मनी से पलायन कर इंग्लैंड पहुंचे थे।
पर इससे भी ज्यादा, अफ्रीकियों को गुलाम बनाकर और भारत, चीन, जापान के मजदूरों को गिरमिटिया बनाकर उपनिवेशों में ही नहीं, यूरोप अमरीका तक में बागानों को चलाने और रेलवे लाइनें बनाने के लिए ले जाया जाता था। जिन सिक्खों को पहले अंग्रेजी कंपनियां शंघाई में अपने बैंकों व दफ्तरों की चीनियों से सुरक्षा के लिए गार्ड बना कर ले गईं थीं, उनमें से कुछ कनाडा कैलीफोर्निया पहुंचकर फार्मर भी बन गए थे।
इंसानों के बीच राष्ट्र का भेद, सीमा पर बाड़, पासपोर्ट वीजा का सिस्टम, इंसानों को अवैध मानने का विचार, कागज दिखा पहचान व नागरिकता स्थापित करने की मांग, हथकडियों बेडियों में जकड़कर वैसे डिटेंशन सेंटरों में डालना जैसे असम में तथाकथित बंगाली ‘घुसपैठियों’ के लिए बनाए गए हैं और डिपोर्टेशन, यह सब मोनोपॉली पूंजीवाद व साम्राज्यवाद के प्रभुत्व के परिणाम हैं, सर्वहारा अंतर्राष्ट्रीयतावाद के आधार पर मजदूरों की एकजुटता द्वारा इस प्रभुत्व को मिटाने से ही खत्म होंगे।
मार्क्स ने कहा मजदूरों का कोई देश नहीं, क्योंकि कोई पूंजी ऐसी नहीं जो उन्हें अपना मानती हो, स्वदेशी मानकर उनका शोषण उत्पीडन न करती हो। और इसीलिए उन्होंने दुनिया के मजदूरों को एक होकर देशी विदेशी सभी पूंजी के शासन के खिलाफ एकजुट हो लडने का आह्वान किया। यही वह उपाय है जो इन दीवारों को ढहा कर सभी इंसानों को बिना भेद सभी जगह आवागमन, निवास, व सामूहिक उत्पादन-उपभोग में शामिल होने की स्वतंत्रता देगा। हम इस या उस देश के सम्मान-अपमान के लिए आपस में क्यों लडें, हमें तो इंसानों के अपमान के खिलाफ, इंसानियत के सम्मान के लिए, पूंजी के राज को खत्म करने के लिए लडना है।
दुनिया के मजदूरों एक हो।