प्रयागराजः पोलैंड और मध्य -पूर्वी यूरोप के कई विश्वविद्यालयों में, जो पुराने और अत्यंत प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय हैं, हिंदी भाषा और साहित्य के अध्ययन , अध्यापन और शोधकार्य को लेकर बहुत उत्साह है। वारसा विश्वविद्यालय में प्राच्यविद्या विभाग पहले विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद स्थापित हुआ , लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान बंद हो गया था। फिर वह पांचवें दशक में शुरु हुआ। वहां कई प्रतिष्ठित विद्वान रहे हैं। पोलैंड में कई महत्वपूर्ण पांडुलिपियों पर शोधकार्य हुआ है। वहां हिंदी के साथ तमिल, बांग्ला और संस्कृत भाषाएं भी पढ़ाई जाती हैं। वारसा विश्वविद्यालय के ओरिएंटल स्टडीज़ विभाग ने कई कार्यशालाओं का आयोजन किया है जो अनुवाद और व्याकरण के क्षेत्र में कार्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

हिंदी के मशहूर रचनाकारों – प्रेमचंद , फणीश्वर नाथ ‘रेणु’, धर्मवीर भारती, मोहन राकेश, दूधनाथ सिंह, काशीनाथ सिंह, कुंवर नारायण जैसे महत्वपूर्ण रचनाकारों की रचनाओं का पोलिश में अनुवाद हुआ है । हिंदी लेखकों के लिए पोलैंड में गहरा सम्मान है। हिंदी का साहित्यिक लेखन हमें समृद्ध करता है।’ उक्त उद्गार आज हिंदी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सभागार में ‘हिंदी: पोलैंड और मध्य पूर्व यूरोप का संदर्भ ‘ विषय पर बोलते हुए वारसा विश्वविद्यालय – पोलैंड के फैकल्टी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़ की वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. दानुता स्तासिक ने व्यक्त किया। वे भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की विजिटिंग फेलो योजना के अंतर्गत भारत आई हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पहले उनका व्याख्यान दिल्ली विश्वविद्यालय, इग्नू और साहित्य अकादमी में भी हुआ है। गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कला संकाय की डीन प्रो. अनामिका राय ने इस तरह के व्याख्यानों के महत्व को रेखांकित किया और पोलैंड तथा मध्य- पूर्व यूरोप के विभिन्न विश्वविद्यालयों में हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं के प्रति उत्साहजनक माहौल के प्रति खुशी प्रकट किया। उन्होंने रेखांकित किया कि युद्ध का भाषा से गहरा रिश्ता है। गोष्ठी के आरंभ में प्रो. दानुता स्तासिक को गुलदस्ता और शाल भेंट कर विभागाध्यक्ष प्रो. लालसा यादव ने स्वागत किया, जबकि उन्हें डीन- कला संकाय प्रो. अनामिका राय ने स्मृति चिन्ह भेंट किया। प्रो. अनामिका राय का स्वागत प्रो. भूरेलाल एवं विभागाध्यक्ष प्रो. लालसा यादव का स्वागत प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह ने किया। वक्ता का परिचय एवं संचालन डॉ. सूर्य नारायण ने तथा आभार ज्ञापन प्रो. कुमार वीरेंद्र ने किया। इस अवसर पर विभाग के कई शिक्षक -डॉ. अमृता , डॉ. दीनानाथ मौर्य, डॉ.संतोष कुमार सिंह, डॉ. अमितेश कुमार, डॉ. वीरेंद्र मीणा , शोध छात्र और परास्नातक के छात्र उपस्थित थे।